मुझे यह जानकर हार्दिक ख़ुशी और आत्मीय आनन्द हुआ कि मालवी जाजम के अनुरागी और मेरे आत्मीय श्री शिवनारायण चौधरी ने लोक संतों के दुर्लभ और गेय गीतों का संग्रह प्रकाशित करने का पवित्र संकल्प लिया है। उल्लेखनीय है कि इस प्रकाशन को मूर्त रूप देने का सारस्वत कार्य कबीर दर्शन के अध्येता भाई सुरेश पटेल के हस्ते हुआ है। यह सोने में सुहागा ही तो है।
हमारे संतो ने सगुण और निर्गुण भावधारा के जो गीत रचे हैं वे भारतीय मनीषा के जीवंत बीज हैं। तुलसी, मीरा, सूर, रसखान और रहीम जैसे अमर रचनाकारों ने भक्ति और समर्पण के जो भाव प्रस्तुत किये हैं, वे बेजोड़ हैं। कबीर, दादू, पलटू, गोरख, ब्रह्मानंद ने विकारों को त्यागने और इंसानियत को पूजने की जो हिदायतें दी हैं उसी से हम सांसारिक विकृतियों से उबर पाए हैं। भक्तिकालीन कवियों की बानियो में मनुष्य को सुधारने और अपने मन में समभाव को जीवित रखने के अमूल्य निर्देश है दरअसल ये निर्गुण संत समाज के शिक्षक ही नहीं साक्षात सद्गुरु भी हैं।
निर्गुण गायकों में परम आदरणीय स्वर पं. कुमार गंधर्व का है। उन्हों मालवा के कबीर को अपनी सुमेरू गायकी से वैश्विक बना दिया। पद्मश्र प्रहलादसिंह टीपान्या ने अपनी भावभीनी मालवी गायकी से कबीर को जन-ज में पहुँचाया। दादा नरेन्द्रसिंह तोमर, सीताराम वर्मा (भेराजी) ने जन-जन पहुँचाने का वरेण्य कार्य किया है, पुखराज पाण्डेय, उदेराम भिलाजी, हीरा बोरलिया, रामअवतार अखण्ड और रघुनाथ बाबा के निष्पाप स्वर से मान लोकगीतों की जो शिप्रा प्रवाहित हुई है वह सादा तबियत के निराभिमानी ग श्री शिवनारायण चौधरी तक चलकर आती है। उनकी सरल तरल तासीर म लोकगायन की पहचान है। स्वांत सुख के लिए की गई उनकी स्वरसाधना स्वभाव में आपको मिट्टी की सौंधी खुशबू मिलेगी धूप में किसी अमराई के बैठने जैसा सुख देती है मैं उनके संकल्प, प्रकल्प और प्रकाशन के प्रति
मालवी लोक गायन में कबीर
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