सुमन ने जब आँखे खोली तब तो उसकी निगाहें घड़ी पर पड़ी, घड़ी में सात बज चुके थे। टाईम उतना हो चुका है ये सोच कर वो चौकी और जल्दी- जल्दी नहा-धोकर तैयार हो गयी। नाश्ता करने और अपने किताबें निकालने में उसे नौ बज गये। उसने जल्दी से सैंडल पहनी और कॉलेज के लिये निकल गयी। गेट पर मोटी-मोटी मुछोंवाला चौकीदार उसे घूर रहा था। सुमन ने तुरंत कहा, काकाजी आज फिर लेट हो रही हूँ, जरा मुझे बस स्टॉप पर पहुँचा देंगे? चौकीदार सुमन की इस बात पर मुस्कूरा दिया और उसने अपने भाई से सुमन को पहुँचा देने को कहा।
सुमन शाम के पाँच बजे बस स्टॉप पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी। उसके चेहरे पर चिंता के निशान थे क्योंकि आज उसकी टेस्ट अच्छी नही गयी थी, वह अपने विचारों में खोई थी के उतने में बस आ गयी। बस में बहूत भीड़ थी। लेकीन फिर भीड़ की परवाह न करते हुए सुमन बस में चढ़ गयी। जब वो होस्टेल पहुँची तो छः बज चुके थे। सुमन के हाथ में घड़ी नही थी, इसलिए जाते ही उसने चौकीदार काका से पूछा, “काकाजी क्या टाईम हो रहा है?” चौकीदार ने कहा, ‘छः बज चुके है बेटी, तुम्हारी सहेली पूजा तुम्हारा इंतजार कर रही हैं।
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