यह सिराज करीम शिकलगार इनकी हिंदी काव्य रचनाओंका पहला संग्रह है। काव्य हो या कोई साहित्य कृती, मानवीय संस्कृती, सभ्यता, उसका विकास और मानव के भितरी एहसासोंका, भावनाओंका आईना होता है। सिराज जी का कविता की तरफ देखने का दृष्टीकोन, समाज व जीवन के लिए कविता यही रहा है। इसलिए उनकी कविताएं मानवीय अनुभवों के साथ साथ समाज और देश के प्रति एक उत्तरदायित्व और जवाबदेही का भी एहसास दिलाती है। उनकी कविताओं मे राजकीय और सामाजीक बोध बडे संतुलित भाव से उभरकर सामने आते हैं, और पाठकों के दिल में उतरकर सोचने पर मजबूर कर देते हैं। हमारे दिल में जो असंतोष, तडफ, चूभन, बेचैनी और पीडित होने की भावना हैं, उनमे चेतना उत्पन्न करते हैं और हमे जीवन को, समाज को और उनकी समस्याओं को समझने में सहाय्यभूत होते हैं। इतना ही नही अपने वर्तमान और भविष्य के संभावनाओं को भी अधोरेखीत करते हैं।
अंततः उनका यही मानना है की चाहे कुटुंब, समाज या देश हो, इनमे समन्वय और सौहार्द बना रहे, इसी मे सब की भलाई और प्रगती हैं। जैसे चमन में विविध जाती और रंग के फूल होते हैं और उनका एक विलोभनिय नजारा होता हैं। चमन का माल इनमें बगैर भेदभाव किए बडे प्यारसे उनका जतन करता हैं। यह देश भी एक चमन क तरह हैं, इसको फलते-फूलते देखना हो तो सौहार्द का वातावरण होना जरुरी हैं।
मुझे आशा हैं की, इस सद्भावना का पाठकों की तरफ से स्वागत होगा सिराज जी के इस हिंदी के प्रथम काव्य संग्रह को मेरी ढेर सारी शुभकामनाए हैं।
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