महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक संघर्ष और पुनर्जागरण की यात्रा को नाटककार डॉ. सतीश पावडे ने बखूबी एकल नाटक ‘ज्योति बन गई ज्वाला!’ के माध्यम से हमारे सामने पेश किया है. सावित्रीबाई फुले के ‘ज्योति से ज्वाला’ बनने के हौसले और जज्बे की यह रंगमंचीय प्रस्तुति पाठक और दर्शक दोनों को समृद्ध बनाएगी, उन में चेतना का निर्माण करेगी और उनका हौसला भी बुलंद करेगी. यह एक ऐतिहासिक चरित्रगत और रंगमंचीय दस्तावेज भी है. नाटक का विषय-आशय, शिल्प-शैली तथा भाषा भी सशक्त है. इस नाटक के सारे दृश्य रंगमंचीयता से भरे है, जो बखूबी से अपना असर पाठक और दर्शकों पर भी छोड़ जाते है. सामाजिक आंदोलन में यह नाटक निश्चित तौर पर जनजागरण का एक सशक्त माध्यम बन सकता है. मैं डॉ. सतीश पावडे को इस नाटक की सफलता के लिए बधाई देती हूं.
Drama and Theatre, HIndi, Manas Publication
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