आसपास के वातावरण में शोषित वंचितो का जीवन देखकर कबीर के विचारो से प्रेरणा। सन् 1998 से कबीर के सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलन, संवैधानिक मूल्यों पर जनजागरूकता के कार्यों में संलग्नता। दृष्य श्रव्य केन्द्र, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के लिए तीन शैक्षिक डाक्युमेंट्री फिल्मों का स्क्रिप्ट लेखन। 2002 में शिक्षा से वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए ज्योतिबा फुले अवार्ड। स्वर्गीय अंजय स्मृति समाज सेवा सम्मान 2019। प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित। कबीर गायन से सामाजिक बदलाव, कहत कबीर, देश कबीर का, हम वासी उस देश के, मालवी लोक गायन में कबीर पुस्तकें प्रकाशित कबीर और संविधान, समाज कला संस्कृति और संवैधनिक मूल्य, निमाड़ी लोक में कबीर प्रकाशाधीन सम्प्रति, भारतीय कपास निगम लि. वस्त्र मंत्रालय से 2017 में वरिष्ठ कपास क्रय अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हो सामाजिक सांस्कृतिक संवैधानिक मूल्यों की स्थापना के कार्यों में सक्रिय।
“लोक संस्कृति दरअसल आवाम की आवाज है, जो जनता के लिए जनता की बोली, भाषा में होती है। जब सारे हथियार बेकार पड़ जाते है तब समाज के बीच लोक संस्कृति का रूप ही क्रांति में ढलता है और सभी की नसों में दौड़ने लगता है। भारतीय इतिहास में कबीर और निर्गुण की उत्पति भी कुछ ऐसी ही है।”
लोक में वाणियों की प्रमाणिकता के बजाय उनके प्रचलन को आधार माना गया है, यह लोक वित्त पर कबीरी रंग है, यह कबीर के सत्य का अनुगान है, जो हजारों कंठो से फूटता है और फैलता चला ाता है, लोक में प्रमाण भाषा से नहीं जीवन व्यवहार और जीवंत परम्परा से आते है।
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